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इंतज़ार की इन्तेहा।
























Image Courtesy: Google.












तुमसे मिलने की कोशिश हर बार की थी 
खुद पर विजय पाने की भी कोशिश हर बार की थी 
पता नही ऐसी कौन सी खता हमने की थी 
जो सारी कोशिशें नाकाम हो गयी थी 

पर हमने आस न छोड़ा 
खुद को न तोड़ा 
तुमसे मुँह कभी न मोड़ा 
फिर भी तुमने हमसे अपना दिल न जोड़ा 

सपनों में ही सही मैंने तुम्हें अपना बना लिया था 
रैनो ने मुझे जीना सीखा दिया था 
मेरी रूह ने तुम्हारे साये को पास बुला लिया था 
तुम्हारे साये ने मुझे तुम्हारे होने का एहसास दिला दिया था 

संयोगवश एक दिन तुमसे मुलाकात हुई
न जाने नज़रो में क्या बात हुई 
मेरे नैनों से अश्कों की बरसात हुई 
न जाने कैसी  ये घटना   मेरे साथ हुई 

मेरे सोये अरमान फिर से जाग रहे थे
तुम्हें पा लेने की चाह में मेरे नैन बरस रहे थे 
मुझे लगा दो दिल मिल रहे थे 
तुम्हारे साये को छोड़ कर फिर से हम तुम पर फिसल रहे थे 

 © शांडिल्य मनिष तिवारी।






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6 Comments

  1. Replies
    1. सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

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  2. बहुत बढ़िया। आपको शुभकामनाएं।

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    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

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  3. रचना शामिल करने के लिए शुक्रिया।

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