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हम तेरे वजूद को ज़िंदा रखेंगे,
अमावश में भी एक चंदा रखेंगे।
लोग मुझे बहका हुआ आशिक़ समझें,
हम अपनी ग़ज़ल को थोड़ा उम्दा रखेंगे।
कोई पहचान ना ले भीड़ में हमको,
हम घर से निकलते वक्त पर्दा रखेंगे।
इश्क़-ए- क़लाम से तक़लीफ़ है तो,
हम आवाज़ को थोड़ा मंदा रखेंगे।
मेरी मोहब्बत का यकीन होगा तुम्हें,
हम साथ में फाँसी का फंदा रखेंगे।
©नीतिश तिवारी।
8 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-03-2019) को "जूता चलता देखकर, जनसेवक लाचार" (चर्चा अंक-3268) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteबहुत ही बढ़िया गजल,नितीश जी।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteकितने आशिकों ने झाँका है तेरी खिडकी में
ReplyDeleteउसके लिए भी एक बन्दा रखेंगे ||
वाह! गज़ब।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।