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मंज़िल
हो मन उदास या तन थका
तू अपनी मंज़िल की ओर चला
राह में रोड़े आये या पहाड़ बड़ा
तू चरण पादुका को अग्रसर बढ़ा
रख खुद पर भरोसा तेरे सर पर होगा ताज सजा
अगर तू थम जायेगा
तेरा स्वपन अधूरा रह जाएगा
तेरा मेहनत धरा का धरा रह जाएगा
तू अपने सपनों का हत्यारा कहलायेगा
फिर शायद तू कोई लक्ष्य हासिल ना कर पायेगा
एक पड़ाव को मंज़िल समझ तू थम ना जा
मृगतृष्णा की इस दुनिया में आने वाले कल को ना भुला
एक दिन ऐसा आयेगा जो मंज़िल को तू पायेगा
तेरा मेहनत तेरा रंग लायेगा
तू भी सफलता के गीत गायेगा ।।
©शांडिल्य मनिष तिवारी।
6 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-03-2019) को "अभिनन्दन" (चर्चा अंक-3262) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रचना शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद।
DeleteThanks for stopping by Treat and Trick. Have a great weekend..
ReplyDeleteYou too.
Deleteबहुत खूब........सादर नमन आप को
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।