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बदलते मौसम में प्यार के रंग।
गर्मी आ गयी है, पर ये मौसम मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता । शायद इसलिए क्योंकि गर्मी की शुरूआत बसंत ऋतु के बाद होती है। बसंत में पेड़ से पुराने पत्ते अलग हो जाते हैं। लेकिन तुम मुझसे अलग होकर फिर मुझमे समाने का नाम नहीं लेती हो। मौसम की तरह खुद को तुमने भी बदल दिया है। कौन से रिवाज़ का चलन शुरू करना चाहती हो। इतना इंतज़ार तो धरती को सूरज भी नहीं करवाता। मेघ की बूंदे धरती पर एक दिन बरस ही जाती हैं। लेकिन तुम्हें तो आँसू का शौक है ना। तो इस शौक को पूरा कर लेना। लेकिन एक बात जान लो, इस बार आँसू मेरे आँखों से भी निकलेंगे। दोनों की मजबूरी यही रहेगी कि आँसू पोछने के लिए एक दूसरे के पास नहीं रहेंगे। पर इसका जिम्मेदार तुम सिर्फ मुझे मत ठहराना। पूछना अपने दिल से कभी कि ये दीवाना तुम्हें कितना प्यार करता है। हाँ, आज भी करता हूँ उतनी ही मोहब्बत। आज भी।
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©नीतीश तिवारी।
8 Comments
बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteमेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर आदरणीय
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।