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खुद को मिटाते रहे उसके नाम के खातिर,
खुद को झुकाया हमने उसके एहतराम के खातिर।
सुना था इश्क़ में हीर राँझा हो जाते हैं,
हमने भी इश्क़ कर लिया इस इनाम के खातिर।
ना मासूमियत की कद्र थी ना रिश्तों की परवाह उसे,
पूरी डाली उसने काट दी एक पके आम के खातिर।
नामुमकिन को मुमकिन करने का उसे बड़ा शौक था,
मुझको भी बर्बाद किया अपने इस अंज़ाम के खातिर।
©नीतिश तिवारी।
खुद को मिटाते रहे उसके नाम के खातिर,
खुद को झुकाया हमने उसके एहतराम के खातिर।
सुना था इश्क़ में हीर राँझा हो जाते हैं,
हमने भी इश्क़ कर लिया इस इनाम के खातिर।
ना मासूमियत की कद्र थी ना रिश्तों की परवाह उसे,
पूरी डाली उसने काट दी एक पके आम के खातिर।
नामुमकिन को मुमकिन करने का उसे बड़ा शौक था,
मुझको भी बर्बाद किया अपने इस अंज़ाम के खातिर।
©नीतिश तिवारी।
18 Comments
आपकी लिखी रचना रविवार 14 अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-04-2019) को "दया करो हे दुर्गा माता" (चर्चा अंक-3305) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
दुर्गाअष्टमी और श्री राम नवमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपको भी रामनवमी की ढेर सारी शुभकामनाएं।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteबहुत खूब.... ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteहर शेर मुकम्मल हर शेर लाजवाब ।
ReplyDeleteउम्दा बेहतरीन
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Deleteखूबसूरत रचना नितीश जी।
ReplyDeleteआभार।
Deleteलाजवाब गजल...
ReplyDeleteहर शेर मुकम्मल...
वाह!!!
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Deleteबहुत सुन्दर ये इश्क है नहीं इतना आसान
ReplyDeleteसादर
आपका धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।