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Gazal: Heer Ranjha Aur Ishq.























Pic credit : Google.







खुद को मिटाते रहे उसके नाम के खातिर,
खुद को झुकाया हमने उसके एहतराम के खातिर।

सुना था इश्क़ में हीर राँझा हो जाते हैं,
हमने भी इश्क़ कर लिया इस इनाम के खातिर।

ना मासूमियत की कद्र थी ना रिश्तों की परवाह उसे,
पूरी डाली उसने काट दी एक पके आम के खातिर।

नामुमकिन को मुमकिन करने का उसे बड़ा शौक था,
मुझको भी बर्बाद किया अपने इस अंज़ाम के खातिर।

©नीतिश तिवारी।

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18 Comments

  1. आपकी लिखी रचना रविवार 14 अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    Replies
    1. रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-04-2019) को "दया करो हे दुर्गा माता" (चर्चा अंक-3305) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    दुर्गाअष्टमी और श्री राम नवमी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    Replies
    1. आपको भी रामनवमी की ढेर सारी शुभकामनाएं।

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  3. बहुत सुंदर रचना

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  4. बहुत खूब.... ,सादर नमस्कार

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  5. हर शेर मुकम्मल हर शेर लाजवाब ।
    उम्दा बेहतरीन

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

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  6. लाजवाब गजल...
    हर शेर मुकम्मल...
    वाह!!!

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    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

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  7. बहुत सुन्दर ये इश्क है नहीं इतना आसान
    सादर

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