चल तेरे को मैं एक बात बोलता हूँ,
इन दुनिया वालों की मैं जात बोलता हूँ,
जितना ही तू उठेगा उतना ही ये गिराएंगे,
आज सबके सामने इनकी ये औकात बोलता हूँ।
ना रुकना है ना झुकना है बस चलते रहना है,
नदी के पानी के साथ तुझे बहते रहना है,
मंज़िल तुझे दूर दिखे फिर भी ना घबराना है,
काला अक्षर भैंस बराबर अब नहीं कहलाना है।
दुनिया की फिक्र करेगा तो करता ही रह जाएगा,
पानी से डरेगा तो तैरना कैसे आएगा,
आँसूओं की घूँट को जूस बनाकर पी जा तू,
आँसूओं की ताकत तू तब समझ पाएगा।
चल तेरे को मैं एक बात बोलता हूँ,
आज अपनी ज़िंदगी के मैं राज़ खोलता हूँ,
चाहे कुछ भी बन जाये ज़मीन से जुड़े रहना,
ये लाख पते की बात है तुझे मैं फ्री में बोलता हूँ।
©नीतिश तिवारी।
4 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (18-04-2019) को "कवच की समीक्षा" (चर्चा अंक-3309) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत धन्यवाद सर।
Deleteबेहतरीन रचना आदरणीय
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।