Pic credit : Pinterest.
मोहब्बत पाने को हमने खूब तरतीब किया,
बस यही एक फैसला हमारा गलत हो गया।
Mohabbat pane ko humne khoob tarteeb kiya,
Bas yahi ek faisla humara galat ho gaya.
गुनाहों की सज़ा दे पर थोड़ा कद्र-ए-मोहब्बत भी कर,
धड़कनों को जिस्म से अलग करके ज़िंदा कैसे रहेगा।
Gunahon ki saza de par thoda kadr-e-mohabbat bhi kar,
Dhadkano ko jism se alag karke zinda kaise rahega.
तरतीब- Arrangement.
©नीतिश तिवारी।
शायरी अच्छी लगी हो तो कृपया Facebook पेज को लाइक जरूर कीजिए।
मोहब्बत पाने को हमने खूब तरतीब किया,
बस यही एक फैसला हमारा गलत हो गया।
Mohabbat pane ko humne khoob tarteeb kiya,
Bas yahi ek faisla humara galat ho gaya.
गुनाहों की सज़ा दे पर थोड़ा कद्र-ए-मोहब्बत भी कर,
धड़कनों को जिस्म से अलग करके ज़िंदा कैसे रहेगा।
Gunahon ki saza de par thoda kadr-e-mohabbat bhi kar,
Dhadkano ko jism se alag karke zinda kaise rahega.
तरतीब- Arrangement.
©नीतिश तिवारी।
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4 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2019) को "कुछ सीख लेना चाहिए" (चर्चा अंक-3331) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर भाव
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत धन्यवाद अनिता जी।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।