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NDTV के क्रांतिकारी पत्रकार Ravish Kumar ने अपने एक Fan को थप्पड़ मारा!

NDTV के क्रांतिकारी पत्रकार Ravish Kumar ने अपने एक Fan को थप्पड़ मारा!






             















हाँ जी, बिल्कुल सही पढ़ा आपने। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में क्रांतिकारी पत्रकारिता करने वाले एक ही पत्रकार हैं और उनका नाम है रविश कुमार।  वही रविश कुमार जो कभी स्क्रीन काली कर लेते हैं तो कभी सिर्फ ऐसे लोगों को इंटरव्यू के लिए बुलाते हैं जो सरकार के खिलाफ जमकर जहर उगलते हैं। खैर, ये उनका काम है और वो करते रहेंगे।

लेकिन एक बात मानना पड़ेगा कि भाई साहब रिपोर्टिंग बड़ी धाँसू करते हैं। मतलब मैं तो इनका फैन ही हो गया हूँ। एक किताब भी इनकी पढ़ी थी- इश्क़ में शहर होना। काबिल-ऐ-तारीफ लिखा है इन्होंने। समय मिले तो जरूर पढ़िए। 


अब जबकि हम रविश कुमार के फैन हो ही चुके थे तो पिछले दिनों चले गए इनसे मिलने। NDTV के ऑफिस पहुंचे तो पता चला कि साहब बेगूसराय गए हैं कन्हैया के प्रचार की कवरेज और इंटरव्यू के लिए। फिर क्या था, हमने भी बैग पैक किया और अगले ही दिन बेगूसराय के लिए निकल पड़े। सोंचा, इसी बहाने कन्हैया के चुनावी जमीन के बारे में भी पता चल जाएगा।


कई घंटों के लंबे सफर के बेगूसराय पहुँचा। सीधे रविश कुमार के होटल पहुँचा। मिलने के लिए हमने दिल्ली से ही appointment ले लिया था इसलिए कोई दिक्कत नहीं हुई। होटल के कमरे का दरवाजा रविश कुमार के कैमरामैन ने खोला। 


"रविश जी, नमस्कार । मैं नीतिश, दिल्ली से आया हूँ आपसे मिलने।"

"आइये नीतिश जी, बैठिए।"
रविश कुमार ने हल्के मुस्कान के साथ मेरा स्वागत किया। शायद उन्होंने मेरा ट्विटर bio पढ़ लिया था कि मैं मोदी भक्त हूँ।
खैर, चाय नाश्ते के बाद रविश जी से असली बातचीत शुरू हुई।

मैंने कहा, "सर मैं आपका बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ और इसलिए इस चुनावी सरगर्मी के बीच आपसे मिलने यहाँ तक चला आया हूँ।"

"जी, धन्यवाद।" रविश जी ने आभार व्यक्त किया।
"रविश जी, मैं आपसे कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ। कई दिनों से आपके बारे में जानने की जिज्ञासा है।"
"तो आप एक पत्रकार का इंटरव्यू लेने आये हैं?"
रविश कुमार ने हैरानी भरे हाव भाव के साथ पूछा।
"पत्रकार नहीं सर, आप तो क्रांतिकारी पत्रकार हैं और ये इंटरव्यू नहीं है बल्कि ये तो वो साक्षात परम ज्ञान है जो आज आपसे मुझे मिलने वाला है।"
"ठीक है, पूछिए।"
मैंने कहा,"सबसे पहले तो मैं ये जानना चाहता हूँ कि जो कन्हैया कुमार 'पूंजीवाद से आजादी' के नारे लगाता था । उसी का आज के अखबार के पहले पन्ने पर चुनावी ad है। इसके बारे में क्या कहेंगे?"
"देखिए, ऐसा है कि चुनाव में कैंडिडेट खड़ा हुआ है तो प्रचार तो करेगा ना। जहाँ तक पैसे की बात है तो जनता ने सहयोग किया है। एक गरीब छात्र नेता है। मोदी जी की तरह अंबानी और अडानी से पैसे नहीं मिला है ना।"
"ठीक है, चलिए मान लिया आपकी बात। अच्छा ये बताइये कि अभी जो मोदी जी और अक्षय कुमार का अपोलिटिकल इंटरव्यू था, उस पर भी आपको दिक्कत है। आपने ब्लैक स्क्रीन करके अपोलिटिकल प्राइम टाइम चला दिया?"
"अब क्या करें, किसी को तो जवाब देना पड़ेगा। आखिर इस तरह के इंटरव्यू का मकसद क्या था? किसने इसे फंड किया?"
"मतलब आप मानते हैं कि मोदी जी की कोई भी बात हो, चाहे उनका शूट हो, चौकीदार वाली बात हो या विदेशी दौरा। सबका विरोध करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है?"
"हाँ कुछ ऐसा ही समझ लीजिए। भाई trp भी तो चाहिए।"
"रविश जी, आप अपने फेसबुक पोस्ट पर कमेंट्स पढ़ते हैं, कितना विरोध होता है आपकी बातों का?"
"हाँ, पढ़ता हूँ और मैं ये दावे के साथ कह सकता हूँ कि सब भाजपा के IT सेल वाले लोग ही अनाप शनाप लिखते हैं।"
"रविश जी, मैंने आपका कई दिनों के प्राइम टाइम का विश्लेषण किया है। बहुत बढ़िया कवरेज किया था आपने। चाहे वो SSC का कवरेज हो, युवाओं में बेरोजगारी की बात हो, पर्यावरण की बात हो या फिर रेलवे के परीक्षा सेंटर दूर दिए जाने की। लेकिन हर कवरेज के आखिर में आप मोदीजी पर दोष देकर सब गुड गोबर कर देते हैं। आपका क्या कहना है?"
"मेरा बस यही कहना है कि सरकार से ही तो सवाल पूछा जाएगा।"
"लेकिन सरकार तो पहले भी थी। आपकी क्रांतिकारी पत्रकारिता पहले नज़र नहीं आती थी।"
" भाई साहब, पहले की सरकारों के खिलाफ बोलने पर trp नहीं मिलता था ना।" 
"मतलब आप सबकुछ trp के लिए ही करते हैं?"
"जी हाँ, उसी बात का तो पैसा मिलता है।"
"ठीक है रविश जी लेकिन एक बात समझ नहीं आयी। बजट के दौरान चर्चा करते वक़्त आपने कहा कि सरकार ने फलाने योजना में 5000 करोड़ आवंटित किए थे, जिसमे से सरकार केवल 4500 करोड़ ही खर्च कर पायी। ये कैसा तर्क है?"
"हाँ मतलब सही तो है। सरकार को पूरा पैसा खर्च करना चाहिए था।"
"चलिए रविश जी, अब जाने का वक़्त हुआ, लेकिन जाते जाते आखिरी सवाल। कौन जात हो?"

ये सवाल पूछना था कि रविश कुमार ने एक जोरदार तमाचा मेरे गाल पर जड़ दिया। तमाचे की झनझनाहट से मेरी नींद खुल चुकी थी। रात का ये भयानक सपना टूट चुका था। मैं सोचने लगा कि 3 महीने पहले रविश कुमार ने सही कहा था कि चुनाव तक न्यूज़ चैनल देखना बंद कर दीजिए।


©नीतिश तिवारी।


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4 Comments

  1. ब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सब को मजदूर दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएँ !!

    ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 01/05/2019 की बुलेटिन, " १ मई - मजदूर दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरुवार (02-05-2019) को " ब्लॉग पर एक साल " (चर्चा अंक-3323) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    ....
    अनीता सैनी

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    Replies
    1. मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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