मैं तेरे एहसास से ना जाने कब मिल गया,
और तेरी चाहत थी, मुझे भूल जाने की.
मैं तेरे दामन में कुछ यूँ लिपट गया,
और तेरी चाहत थी, मुझसे दूर जाने की.
मैं तेरी रूह में हर पल बस गया,
और तेरी चाहत थी, गैरों के घर बसाने की.
मैं तेरे हर लफ्ज़ में ग़ज़ल बन गया,
और तेरी चाहत थी,दूसरों के गीत गुनगुनाने की.
मैं तेरी बारिश में पतझड़ सा बन गया,
और तेरी चाहत थी,सूखे में रह जाने की.
मैं तेरी चौखट पे ना जाने कब मर गया,
और तेरी चाहत थी कहीं और सर झुकने की.
प्यार के साथ
आपका नीतीश
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