ये कैसा प्रेम है,
जिसे है बिछोह की तलाश.
आख़िर आज ये कैसा क्षण है,
जिसमे रूह को रूह से,
अलग होने का हो रहा आभास.
कुछ विस्मृत यादें,
कुछ अधूरे एहसास,
चंद खुशी के पल,
समेटे हुए है प्रेम.
नज़रों के साथ नज़राने,
यादों के साथ तराने,
कभी रूठने के,
तो कभी मनाने के बहाने.
दूर जाती वो किरण,
आसमान से छटते वो बादल,
सर्द हवा का झोंका,
ये सब मैने देखा.
द्वंद है ये प्रेम की,
खुद से ही बिछड़ने की,
खुद से ही अलग होकर,
खुद मे ही सिमटने की.
©नीतिश तिवारी।
2 Comments
bahut sundar
ReplyDeleteDhnyawad
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