अश्क के हर एक बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ,
दर्द भरे अपने ज़ख़्मों को अब हटाना चाहता हूँ.
ये जानते हैं हम की पास नही कोई दरिया,
इस रूह के प्यास को फिर भी बुझाना चाहता हूँ.
महलों में रहने वाले हमारे दर्द को क्या जाने,
इस झोपड़ी में रहकर ज़िंदगी गुज़रना चाहता हूँ.
शायद हमारे प्यार पर उनको ना कुछ यकीन था,
फिर भी उनका हरेक नगमा अब गुनगुनाना चाहता हूँ.
इस बेदर्द सी दुनिया में एक उनका ही तो साथ था,
जब तोड़ दिया दिल मेरा अब भूल जाना चाहता हूँ.
मुद्दतो से देखा नही चेहरा किसी हसीन का,
अब पास तेरे आकर तुम्हे निहारना चाहता हूँ.
दिल पर ज़ख़्म ऐसे मिले रहकर साथ उनके,
इन ज़ख़्मो पर अब मैं मरहम लगाना चाहता हूँ.
रंगों की इस बाहर में अदाएँ तेरी अजीब है,
अपनी जीत को भी अब मैं हार बनाना चाहता हूँ.
एक रात उनसे बात हुई कुछ हमारे प्यार की,
उस रात भर रोने के बाद अब मुस्कुराना चाहता हूँ.
भूल कर उनके दर्द हो हमने तुम्हारा रुख़ किया,
इस बेवफ़ाई के गम को हर पल मिटाना चाहता हूँ.
मेरी ज़िंदगी के हर एक ज़ख़्म अब भरने लगे हैं,
आ तुझे ओ दिलरुबा अपनी ज़िंदगी बनाना चाहता हूँ.
प्यार के साथ
आपका नीतीश
9 Comments
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर..आगे भी आपका सहयोग अपेक्षित रहेगा.
Deleteबहुत सुन्दर गजल.
ReplyDeleteनई पोस्ट : उत्सवधर्मिता और हमारा समाज
आपका आभार
Deleteशुक्रिया सर जी ..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDeletethnks a lot pratibha ji..
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।