याद आती है मुझे
वो पूस की रात ,
जो गवाह थी ,
हम दोनों के मिलन की।
मैं था ,तुम थी ,
और फलक पे था चाँद ,
अपनी गरिमा बिखेरे हूए,
अपनी लालिमा समेटे हूए।
सुनायी देती है मुझे ,
तुम्हारे दिल कि धड़कन ,
जो हर पल जुड़ रही थी ,
सिर्फ मेरे धड़कन से।
महसूस होती है मुझे ,
वो हर एक साँस ,
जिसमे गरमी थी सिर्फ ,
तुम्हारे साँसों की।
तेरे चेहरे का आकर्षण ,
तेरे बदन कि खुशबू ,
खींच रहा था मुझे ,
एक अटूट बंधन कि ओर।
तुम्हारा स्नेह ही तो था,
जो मेरे साथ था,
एक तुम ही तो थी,
जिसे अपना कहा था।
पर टूट गया वो बंधन ,
किसी नाजुक धागे की तरह ,
अब नहीं रहा वो संगम,
सच्चे वादों की तरह।
पर फिर आयेगा वो मौसम ,
नए अफ़साने की तरह ,
और फिर होगा पुनर्मिलन ,
नए फ़साने की तरह।
प्यार के साथ
आपका नीतीश।
सच्चे वादों की तरह।
पर फिर आयेगा वो मौसम ,
नए अफ़साने की तरह ,
और फिर होगा पुनर्मिलन ,
नए फ़साने की तरह।
प्यार के साथ
आपका नीतीश।
10 Comments
बहुत सुन्दर नितीश भाई , अच्छा ब्लाग है आपका
ReplyDeleteहिंदी टाइपिंग साफ्टवेयर डाउनलोड करें
dhnyawad aapka ashish ji
Deleteआपकी यह उत्कृष्ट रचना कल रविवार दिनांक 27/10/2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है .. कृपया पधारें औरों को भी पढ़ें |
ReplyDeletethnks a lot shalini ji..
Deleteसुन्दर रचना !
ReplyDeleteनई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )
मेरी रचना सराहने करने के लिए धन्यवाद.
Deleteअहसासों को तरंगित करती हुयी रचना .... आभार बन्धु।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका.
DeleteBdya Nitish Bhai
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।