Two line shayari
काबिल-ए-तारीफ थी तेरी वफ़ा-ए-मोहब्बत,
सबको आबाद करके हमे बर्बाद किया.
मत पूछो मुझसे तरकीब आज़माने की,
उनसे मोहब्बत हुए ज़माना गुज़र गया .
उस बरसात की रात का भी क्या सुरूर था,
वो लिपटे जिस्म से थे और मेरा रूह उनसे दूर था.
बरसों से निगाह थी उसकी मेरे दिल के खजाने पर,
वो लूटता चला गया और मैं तन्हा खड़ा रहा.
3 Comments
बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी
Deleteलम्बे अंतराल के बाद शब्दों की मुस्कुराहट पर ....बहुत परेशान है मेरी कविता
ReplyDeleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।