जरुरत थी या मजबूरी , जो तुमने निभायी ये दूरी। दस्तूर तुम्हारा ऐसा था , मैं चाँद कि आस में जगा था। एक छोटी सी नादानी थी , जो रूठी हुई कहानी थी। एक मौसम जो मेरे साथ था , एक उलझन जो तेरे पास था। मेरा जिस्म तेरी पनाह में था , पर तेरा रूह न जाने किसके पास था।
4 Comments
bahut bahut dhnywad
ReplyDeleteसुन्दर रचनायें।
ReplyDeleteमेरा जिस्म तेरी पनाह में था ,
ReplyDeleteपर तेरा रूह न जाने किसके पास था।
bahut khoob likha hai.
shubhkamnayen
Thank u so much
ReplyDeleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।