मर्ज़ी उसकी थी,इरादा मेरा था,
पर्दे उसके थे, दरवाज़ा मेरा था.
ख्वाब मेरे थे,सच उसके हुए,
अल्फ़ाज़ मेरे थे,ग़ज़ल उसके हुए.
मंज़िल उसकी थी,रास्ता मेरा था,
खुशियाँ उसकी थी,दर्द मेरा था.
इबादत मेरी थी,खुदा उसका हुआ,
इनायत मेरी थी,वफ़ा उसका हुआ.
खंजर उसकी थी,कत्ल मेरा हुआ,
आँखें उसकी थी,आँसू मेरे हुए.
4 Comments
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (14.02.2014) को " "फूलों के रंग से" ( चर्चा -1523 )" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,धन्यबाद।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteलाजवाब....
:-)
dhnywad sanjay ji...
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।