बहुत बंदिशें हैं ज़माने की,
फिर भी बेताब हूँ तेरे दीदार को.
क्यूँ ना साथ मिले अब तेरा,
जब हम छोड़ आए अपने घर-बार को.
पलके झुकाए खड़ी हो तुम,
न जाने किसके इंतज़ार को,
दिल में कसक सी उठ रही है,
अब हो जाने दो इज़हार को.
कुछ हसरत मेरी निगाहों में है,
कुछ उलफत तेरी अदाओं में है,
कुछ बरकत उसकी दुआओं में है,
कुछ जन्नत तेरी वाफ़ाओं में है.
तेरी उलझी हुई इन ज़ुल्फों से,
हर बार सुलझ जाता हूँ मैं ,
तेरी कातिल भरी इन नज़रों में,
हर बार नज़र आता हूँ मैं.
अपने होठों की इन सुर्खियों पर,
अब नाम मेरा लिख दे तू,
अपने माथे की इस बिंदिया पर,
अब नाम मेरा लिख दे तू.
with love
your nitish.
4 Comments
बहुत सुंदर कविता .......सशक्त लेखन !!
ReplyDeletemeri is sundar prastuti ko pasand karne ke liye aapka aabhar
Deletebahut pyari rachna, prem ras se bhari, achhi lagi.
ReplyDeleteshubhkamnayen
meri rachna ko sarahne ke liye aapka bahut bahut dhanywad..
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।