जलती हुई राख भी कम पड़ जाती है ,
जब तेरे दर्द की चुभन दिल को छू जाती है,
और मैं तलाश करता हूँ उस साहिल को ,
पर हर बार ये दरिया धोखा दे जाती है।
लहू का रंग अगर लाल न होता ,
तो शायद तेरी गली में मैं बदनाम न होता ,
एक ख्वाब नज़र आता था तेरी आँखों में मुझको ,
वरना यूँ ही मैं तेरे मोहब्बत पे कुर्बान न होता।
4 Comments
नयी पुरानी हलचल का प्रयास है कि इस सुंदर रचना को अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
ReplyDeleteजिससे रचना का संदेश सभी तक पहुंचे... इसी लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 02/06/2014 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
[चर्चाकार का नैतिक करतव्य है कि किसी की रचना लिंक करने से पूर्व वह उस रचना के रचनाकार को इस की सूचना अवश्य दे...]
सादर...
चर्चाकार कुलदीप ठाकुर
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ekmanch+subscribe@googlegroups.com पर...जुड़ जाईये... एक मंच से...
aapka bahut bahut dhanywad kuldeep ji...
ReplyDeleteसुन्दर दिलकश शायरी
ReplyDeletethank u so much........
ReplyDeleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।