कोई शब्द मिले,
कोई राग छिड़े,
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
मोहब्बत फिर से हो,
इबादत फिर से हो,
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
फ़िज़ाये फिर से महकें ,
घटायें फिर से बरसें ,
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
फिर से वही रात हो,
थोड़ी सी मुलाकात हो,
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
कँगना फिर से खनके ,
बिंदिया फिर से चमके ,
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
नज़रें फिर से देखें ,
धड़कन फिर से धड़के ,
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
फिर से तेरा दिदार हो ,
महकी फ़िज़ा में बहार हो,
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
फिर से मुझे नींद ना आये ,
फिर से किसी कि याद सताये ,
तो मैं लिखूं एक ग़ज़ल।
नीतीश
2 Comments
बहुत सुंदर रचना .
ReplyDeleteआपका आभार राकेश जी
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।