घर से बाहर जब मैं धूप में निकला, सारा खजाना उसकी संदूक में निकला, कहता फिरता था की मैं पाक साफ हूँ, दुनिया का सबसे बड़ा रसूख वो निकला. ना मोहब्बत थी ना मैने होने दी, फिर भी उसकी नज़र में शरीफ ना निकला, वो कयामत थी या ना जाने खुदा, हर चेहरा उसकी उम्मीद में निकला.
8 Comments
आपका आभार सर जी
ReplyDeleteचकित हूँ !
ReplyDeleteऐसा क्यूँ ?
ReplyDeleteखूब! बहुत खूब! हाले दिल ...
ReplyDeleteशुक्रिया कविता जी
DeleteBahut khoob prastuti. Dusari aur chouthy pnkti lajawaab thi !zb
ReplyDeleteaapka bahut bahut aabhar pari ji
Deleteएक नए अंदाज एवं शैली में प्रस्तुत आपकी पोस्ट अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।धन्यवाद।
ReplyDeleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।