फ़ुर्सत में मैं ग़ज़ल लिखता हूँ,
तेरी यादों का एक सफ़र लिखता हूँ.
वो वक़्त जो थम सा गया था कभी,
उस वक़्त की रगुजर लिखता हूँ.
काली घटा और तेरी ज़ुल्फ़ो के बीच,
गुजरा हुआ वो मौसम लिखता हूँ.
हर एक रंग में और तेरे संग में,
सपनो का एक शहर लिखता हूँ.
कुछ बदहाली में तो कुछ खुशहाली में,
ज़िंदगी का ये भ्रम लिखता हूँ.
तेरी खुश्बू में और तेरी जूस्तजू में,
अपने होने का वो वहम लिखता हूँ.
तेरी धड़कन में और तेरी तड़पन में,
अपने साँसों का वो सितम लिखता हूँ.
तेरी आवारगी में और तेरी दीवानगी में,
भटकते राहों का मंज़िल लिखता हूँ.
फ़ुर्सत में मैं ग़ज़ल लिखता हूँ,
तेरी यादों का एक सफ़र लिखता हूँ.
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धन्यवाद.
© नीतीश तिवारी
10 Comments
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (02-03-2015) को "बदलनी होगी सोच..." (चर्चा अंक-1905) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका आभार मयंक जी
Deleteबहुत सुंदर गजल.
ReplyDeleteनई पोस्ट : ईमान बिकता नहीं
धन्यवाद सर जी
Deleteबहुत खूब ... लाजवाब शेर हैं ग़ज़ल के ...
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Deleteआपका शुक्रिया
वाह, वाह क्या बात है। बहुत खूब।
ReplyDeletethank u so much
Deleteबहुत खूब..।।
ReplyDeleteबहुत खूब..।।
ReplyDeleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।