ढूँढ रहा था जिस पल को उसमे होकर लौटा हूँ,
मैं मुसाफिर हूँ यारो सब कुछ खोकर लौटा हूँ,
और तुम क्या जानोगे अदब मेरी दीवानगी का,
उसके होठों की मुस्कान को मैं लेकर लौटा हूँ.
कोई वो पल ना था जिस पल मैं तड़पा नही,
सारे गमों को अपने मैं सॅंजो कर लौटा हूँ,
दुनिया मुझसे नफ़रत करे फिर भी मुझे गम नही,
सबके दिल मे एक प्यार के बीज़ बो कर लौटा हूँ.
©नीतीश तिवारी
8 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (23-04-2015) को "विश्व पृथ्वी दिवस" (चर्चा अंक-1954) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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विश्व पृथ्वी दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut bahut dhanywaad mayank ji...
Deleteवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
aapka shukriya
Deleteबहुत ख़ुशी हुई आपकी सुन्दर पंक्तियों को पढ़ कर । क्या शब्द हैं ।
ReplyDeleteaapka bahut bahut dhanywaad.
Deleteवाह, बहुत खूब। बहुत ही सुंदर पंक्तियां।
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।