ऐसा क्यूँ करती हो ,
तुम बार-बार,
कि मेरी आँखों से पहुँच कर,
मेरे दिल मे उतर जाती हो.
और मैं फिर,
एक द्वंद मे फँस जाता हूँ.
कि मेरी आँखे खूबसूरत हैं
या मेरा दिल.
इतना याद क्यूँ करती हो मुझे,
की हिचकियाँ रुकने
का नाम नही लेतीं.
और हर बार मैं तुम्हारे पास
आने को बेताब हो जाता हूँ.
©नीतीश तिवारी
10 Comments
बहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteवाह ! बहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteशुक्रिया नीरज जी
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (26-07-2015) को
ReplyDelete"व्यापम और डीमेट घोटाले का डरावना सच" {चर्चा अंक-2048}
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteप्रेम में अक्सर ऐसा हो होता है ... क्यों कुछ होता है ये पता नहीं रहता है ...
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने।
DeleteVery nice post ...
ReplyDeleteWelcome to my blog on my new post.
Thanks
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।