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असहिष्णुता के बहाने मोदी जी को बदनाम करने की साज़िश ।


 कितने अच्छे लग रहे हैं न ये बच्चे,हाथ में तिरंगा लिए हुए। आज मुझे इन बच्चों में अच्छाई  इसलिए नज़र आ रही है कि इन्हे नहीं पता  है कि धर्म,सम्प्रदाय और जाति क्या होता है। इन्हे तो बस इतना पता है की भारत हमारा देश है और ये भारत का तिरंगा झंडा है।


पिछले 2-3 महीने से देश में जो धर्म, सम्प्रदाय और जाति के नाम पर जो लोगों को बाँटने का काम किया जा रहा है,सरदार पटेल के इस अखण्ड भारत के सपने के लिए ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और चिंताजनक है। आज देश के एक विशेष वर्ग को लगता है कि देश में असहिष्णुता का माहौल है और ये बढ़ रहा है। 

मैं कई दिनों से सोच रहा था कि देश के इस मौजूदा हालात पर कुछ लिखूँ ,लेकिन फिर दिमाग से इस बात को निकाल देता था कि मैं क्या लिखूंगा। सबको तो पता ही है कि क्या हो रहा है और क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए। लेकिन पिछले दिनों जिस  तरह से असहिष्णुता को लेकर दो लोगों के बयान आये उसने मेरे अंदर के साहित्यकार (सम्मान लौटाने वाला नहीं ) को लिखने पर मजबूर कर दिया। 

उन दो लोगों के नाम हैं -मुन्नवर राणा और शाहरुख़ खान। मैं व्यक्तिगत तौर पर इन दोनों का बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूँ और ताउम्र रहूँगा। मेरी सबसे बड़ी दिक्कत ये है की मैं जिस भी चीज़ को पसंद करता हूँ उसे पुरे दिल से करता हूँ या यूँ कहें की blindly करता हूँ। चाहे वो कोई व्यक्ति विशेष हो, कोई प्रोडक्ट हो या फिर कोई फिलॉसफी हो। 

पहले बात करते हैं मुन्नवर राणा साहब की। जिस तरह से उन्होंने ABP NEWS पर लाइव पूरे देश के सामने अपना सम्मान लौटाया, मुझे बहुत दुःख हुआ।  मतलब इतने बड़े साहित्यकार की आँखों में एक पता नहीं किस किस्म का डर दिख रहा था जैसे की दुनिया के सबसे बड़े सताए हुए मुसलमान वही हों। मैं किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं हूँ लेकिन माफ़ कीजियेगा जब से मोदी जी प्रधानमंत्री बने हैं तब से मुस्लिम समुदाय ने  बेवजह का डर अपने मन में पाल  रखा है जो की सरासर निराधार और दुर्भाग्यपूर्ण है। हाँ दादरी की घटना को मैं इंसानियत विरोधी मानता हूँ और इसकी कड़ी शब्दों में भर्त्सना करता हूँ।  जो हुआ बहुत हुआ ,ऐसा नहीं होना चाहिए था।  लेकिन हर बात के लिए देश के प्रधानमंत्री (जो दिन रात एक करके देश को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने के लिए प्रयासरत हैं ) को जिम्मेदार ठहरना उचित नहीं है। राणा साहब मुझे हैरानी हुयी की आप जैसे बड़ा साहित्यकार भी क्यों नहीं समझ पाया की आज़ादी के बाद से ही मुस्लिम समुदाय का इस्तेमाल केवल वोट बैंक के तौर पर किया जाता रहा है। और आपको लगता है की देश में असहिष्णुता बढ़ रही है तो आपको अपनी बात रखनी चाहिए थी सरकार के सामने। आप इतने बड़े प्रसिद्ध शख्सियत हैं,मुझे नहीं लगता कि आपको प्रधानमंत्री से मिलने में  कोई दिक्कत का सामना करना पड़ता। क्या सम्मान लौटना ही आखिरी विकल्प रह गया था?

अब बात करते हैं किंग खान की। शाहरुख़ जी मैं आपको इसलिए पसंद नहीं करता की आप इतने बड़े सुपरस्टार हैं या $600 मिलियन आपका net worth  है। बल्कि इसलिए प्यार करता हूँ की आपने मिडिल क्लास यूथ को सपना देखना सिखाया है। जब मिडिया में खबर आई की आपको लगता है की देश में असहिष्णुता है ,ये सुनकर मैं हैरान रह गया।  पहली बार में मुझे लगा की ये मिडिया की फैलाई हुयी या तोड़ मड़ोड़ कर पेश किया गया बयान होगा लेकिन फिर मैंने आपका पूरा इंटरव्यू देखा।  मुझे लगता है की आपके बयान के पीछे दो कारण हो सकते हैं।  पहली बात तो ये है की आप चर्चा में बने रहना पसंद करते हैं और दूसरी बात ये है की आपको वाकई में ऐसा महसूस हुआ होगा की देश में  असहिष्णुता का माहौल है। 
हाँ मैं इस बात से सहमत हूँ कि कुछ संगठन और व्यक्ति विशेष आपके देशभक्त होने के ऊपर सवाल करते हैं जो की बिलकुल निराधार और निंदनीय है।  मुझे पता है की आप न केवल एक सच्चे देशभक्त है बल्कि एक बहुत अच्छे इंसान भी हैं। मेरी तरह हर भारतीय को आप पर गर्व है। पर माफ़ कीजियेगा "आपका यह कहना की देश में असहिष्णुता का माहौल है ", इस बात से मैं सहमत नहीं हूँ।

पुरस्कार लौटने वालों से मैं बस यही कहना चाहूंगा की क्या आपको पिछले डेढ़ सालों से ही असहिष्णुता महसूस हो रही है। और आप देश में खुली हवा में सांस नहीं ले पा रहे हैं।  अगर ऐसा है तो जाकर ऑक्सीजन का सिलेंडर लीजिये ,आपको उसकी ज्यादा जरुरत है, आप बेहतर महसूस करेंगे। उस समय कहाँ थे आप जब कश्मीरी पंडितों पर ज़ुल्म हुआ, जब भागलपुर में दंगे हुए, जब असम में खुलेआम कत्लेआम हो रहा था, जब मुज़्ज़फरनगर में फसाद हुआ और जब देश में आपातकाल लागू  हुआ था।  उस समय आपका आत्मसम्मान तेल लेने गया था ? या आप बंद-कबाब खाने में व्यस्त थे?

और सोनिया मैडम मार्च निकालने  से पहले इतना तो सोची होती कि अगर देश में असहिष्णुता का माहौल होता तो इतने सालो से आपके विदेशी होते हुए भी देश ने आपको स्वीकार न किया होता।  छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले में शहीद हुए कांग्रेसी नेताओं के लिए आप रात के बारह बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस करती हैं और मुझे बताइये की कितने शहीद सैनिको के लिए कितनी बार आपने दुःख प्रकट किया। विपक्ष का मतलब हमेशा  विरोध नहीं होता है। देश के विकास में योगदान दीजिये मैडम और एक भारत श्रेष्ठ भारत के सपने को साकार करने में मदद कीजिये।




जय भारत। जय हिन्द। 
©नीतिश तिवारी।

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13 Comments

  1. जय मां हाटेशवरी....
    आप ने लिखा...
    कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
    हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
    दिनांक 08/11/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की जा रही है...
    इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
    टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    कुलदीप ठाकुर...


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    1. कुलदीप जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद.

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  3. नेताओं को मुद्दा चाहिए
    वे बलि का बकरा इस बार
    साहित्यकारों को
    बना लिए हैं
    साहित्यकार भी
    नेताओँ को झांसे में आ गए

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    1. बिल्कुल सही बात कही है आपने. ब्लॉग पर पधारने के लिए आपका शुक्रिया.

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  4. पर बिहार में तो िसी मुद्दे का सिक्का चला और खूब चला। क्या कह सकते हैंष People get the Government they deserve.

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    1. आपके विचार के लिए आपका धन्यवाद.

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  5. मोदीजी के पास साढेतीन साल और हैं अपनी विकास की बात का सबूत देने के लिये।

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    1. हाँ आपकी बात से सहमत हूँ.

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  6. हार की खुशियाँ
    यह जो भारत है ना जब किसी को बिठाता है तो पलकों पर भी बिठा लेता है लेकिन जब पलकों पर बेठने वाला ही आँखों से छेड़खानी करे तो फिर पटकना भी बहुत अच्छी तरह जनता है
    यही आज बिहार मैं हुआ यह पहली बार हुआ है जब किसी के जीतने के ख़ुशी मनाने के बजाये किसी के हारने पर ज्यादा ख़ुशी मनाई जा रही है ....और ऐसा होना भी लाजमी था
    ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस चुनाव के आक्रमक भाषणो मैं सब कुछ था गाय थी दादरी की घटना थी लेकिन बिहार नहीं था जिसका नतीजा सबके सामने है
    सच कहा जाये तो यह प्रधानमंत्री की ही हार है मोदी जी ने पूरी ताक़त जो लगाई थी उन्होंने और पूरी पार्टी ने मिलकर लगभग 900 रेलियाँ की और BJP के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह पूरी तरह से बिहार में डटे रहने के बावजूद हार गए ....
    याद रखना चाहिए की हर बार विजय रथ का जुमला नहीं उछाला जा सकता .विकास भाषणो में नहीं
    असल में करके दिखाना पड़ता है ..जिस विकास का मुद्दा 2014 में उठाया गया था वो बिहार चुनाव आते आते धरातल तक पहुँच गया ..अमित शाह और उसके सिपहसलारों को बिहार के परिणामों ने बता दिया की मुस्लिमो का नाम लेकर हिन्दुओं का ध्रुवीकरण करने की कोशिशें कहीं भी सफल नहीं हो सकती
    सच है की बिहार में BJP की हार भारत के आने वाले भविष्य की राह तय करेगी .....

    वजीरों को भी तो रास्ता मालूम होना चाहिए “साहेब”
    सिर्फ काफिले ही तय नहीं करते सियासत की मंजिल

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    1. आपके विचार के लिए आपका धन्यवाद.

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