जब जब तेरे मुखर बिंदु से,
मेरा नाम निकलता है,
तब तब मेरे ह्रदय में,
एक सैलाब उमड़ जाता है।
जब जब तेरे होठों की लाली,
चुपके से कुछ कहती है।
तब तब एक नयी कहानी,
इस ज़माने में बनती है।
क्यों न बनूँ दीवाना प्रिये,
जब रूप तुम्हारा ऐसा है।
जैसा हुआ है सबका हाल ,
मेरा हाल भी वैसा है।
अधरों की मेरी प्यास बनी तुम,
ग़ज़लों की मेरी अल्फ़ाज़ बनी तुम
कैसे रह पाऊँ मैं तेरे बिना जब,
जीवन की मेरी विश्वास बनी तुम।
©नीतीश तिवारी
6 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (05-12-2015) को "आईने बुरे लगते हैं" (चर्चा अंक- 2181) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हमेशा की तरह आपका आभार सर।
Deleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना ..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
कैसे रह पाऊँ मैं तेरे बिना जब,
ReplyDeleteजीवन की मेरी विश्वास बनी तुम।
.. बहुत सुन्दर ..विश्वास प्रेम के कड़ी है ...
बहुत अच्छा लिखते है आप । बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।