फिर से वो धुरंधर आएगा,
फिर से वो मंजर आएगा,
सूखी हुई बंजर में,
फिर से वो समंदर आएगा।
ना रुकना तुम्हे,
ना थमना तुम्हे,
बस चलते जाना है।
हार नहीं अल्प विश्राम है ये,
ज़िन्दगी का एक मुकाम है ये।
हार गए तो क्या हुआ,
जज्बा तो हमने दिखाया है,
हर मुश्किल में हर क्षण में,
सबके दिल को लुभाया है।
मन तो उदास बहुत है आज,
पर कल करेंगे फिर से प्रयास,
फिर से जमकर तैयारी होगी,
तब जीत सिर्फ हमारी होगी।
फिर से वो धुरंधर आएगा,
फिर से वो मंजर आएगा,
सूखी हुई बंजर में,
फिर से वो समंदर आएगा।
©नीतिश तिवारी।
6 Comments
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteआपने लिखा...
कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये दिनांक 03/04/2016 को आप की इस रचना का लिंक होगा...
चर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर...
आप भी आयेगा....
धन्यवाद...
बहुत बहुत धन्यवाद ।
Deleteसच है इस बार नहीं तो क्या अगली बार फिर कोशिश करनी होगी .. जीत जरूर मिलेगी ...
ReplyDeleteबिल्कुल। कामयाबी जरूर मिलेगी। ब्लॉग पर पधारने के लिए आपका धन्यवाद।
Deleteसही कहा
ReplyDeleteआपका शुक्रिया
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।