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मुझे इश्क़ की इज़ाज़त दे दे।




















ऐ मौला मुझे इश्क़ की इज़ाज़त दे दे,
बरसों से की है इबादत मैंने,
ना कभी की शिकायत मैंने,

शाम के ढलते सूरज के साथ,
चाहे थी कोई चाँदनी रात,
डूबा रहा हूँ मैं हर पल।
उसकी ख्वाबों में,
उसकी निगाहों में।

उसकी होठों की मुस्कान में,
उसकी आँखों की पहचान में,
उसकी नगमों की दास्तान में,
उसकी मोहब्बत की इम्तिहान में।

उसके हाथों की लकीरों में,
उसकी उलझी हुई तस्वीरों में,
उसकी शोख भरी अदाओं में,
उसकी बाहों की पनाहों में।

खोया रहा हूँ मैं,
बरसों तक,
ख्वाबों की ताबिर में,
एक रूठी हुई तकदीर में।

ऐ मौला मुझे इश्क़ की इज़ाज़त दे दे,
वरना इस इश्क़ का आकिबत कर दे।

©नीतिश तिवारी।

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