वक़्त ने क्या खूब हमें रुलाया है।
बड़ी देर से हम दोनों को मिलाया है।।
तुम पतझड़ में सावन के लिए बेकरार थी।
मैं रेगिस्तान में बारिश का तलबगार था।।
आग सीने में लगी थी जो तुम्हारे।
दिल मेरा क्यों ये जल रहा था।।
मोहब्बत की तड़प थी ये कैसी जो।
बिना लौ के ये मोम पिघल रहा था।।
पर बरसों की दूरी को अब हम मिटायेंगे।
दुनिया से छीनकर तुम्हे अपना बनाएंगे।।
तुम शिकवा करो हम शिकायत करेंगे।
तुम रूठा करो हम मनाया करेंगे।।
खुशनसीब हूँ मैं जो आज तेरा दीदार हुआ।
सज़दे जो बरसों मैंने किये उस पर ऐतबार हुआ।।
©नीतिश तिवारी।
बड़ी देर से हम दोनों को मिलाया है।।
तुम पतझड़ में सावन के लिए बेकरार थी।
मैं रेगिस्तान में बारिश का तलबगार था।।
आग सीने में लगी थी जो तुम्हारे।
दिल मेरा क्यों ये जल रहा था।।
मोहब्बत की तड़प थी ये कैसी जो।
बिना लौ के ये मोम पिघल रहा था।।
पर बरसों की दूरी को अब हम मिटायेंगे।
दुनिया से छीनकर तुम्हे अपना बनाएंगे।।
तुम शिकवा करो हम शिकायत करेंगे।
तुम रूठा करो हम मनाया करेंगे।।
खुशनसीब हूँ मैं जो आज तेरा दीदार हुआ।
सज़दे जो बरसों मैंने किये उस पर ऐतबार हुआ।।
©नीतिश तिवारी।
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