कुछ बातें हैं दिल में,
जिनको मैं बताना चाहता हूँ।
पर कोई नहीं मिलता सुनने वाला,
इसलिए लिख देना जानता हूँ।
कुछ वादें, कुछ कसमें, कुछ गीत, कुछ नज़्में,
याद करना चाहता हूँ, गुनगुनाना चाहता हूँ।
उन सूनी गलियों में भी ना जाने क्यों,
मैं एक रात बिताना चाहता हूँ।
बुझते दिये की लौ जलाना चाहता हूँ,
सूखे पत्तों को हरा बनाना चाहता हूँ।
इस अंजुमन में जो बिखरे से हालात हैं,
मैं उस हालात को सँवारना चाहता हूँ।
तेरे खाली जीवन में रंगों को भरना चाहता हूँ,
तेरे बासी किरण में भोर को देखना चाहता हूँ।
ये जो उलझी ज़ुल्फ़ों की काली घटाएँ हैं ना,
इन काली घटाओं से बारिश को देखना चाहता हूँ।
©नीतिश तिवारी।
3 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-06-2016) को "मौसम नैनीताल का" (चर्चा अंक-2379) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर रचना :)
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 30 जून 2016 को में शामिल किया गया है।
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !
पोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।