कल उसकी आँखों में अपनी तस्वीर नजर आयी।
ज़ुल्म देखिए आज वो नक़ाब पहने बैठे हैं।।
फिर जिंदगी की एक नई शुरुआत होने को है,
सूखे बंजर में बरसात होने को है,
तड़पता रहा उम्र भर जिस शख्स के खातिर,
उस शख्स से आज मुलाकात होने को है।
ख्वाहिशें अगर तुमसे हैं जिंदा तो चल साथ मेरे,
तेरे हर धड़कन की इबादत अब मैं करूँगा,
रंजिशें हैं जमाने में अगर हमारी मोहब्बत के खातिर,
तो मरते दम तक इस जमाने से मैं लड़ूंगा।
©नीतिश तिवारी।
8 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (21-07-2016) को "खिलता सुमन गुलाब" (चर्चा अंक-2410) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 21 जुलाई 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteबढ़िया
ReplyDeleteशुक्रिया सुमन जी।
Deleteप्रेम को नए आयाम देती रचना ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteआपका आभार।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।