देश का हुआ बुरा हाल है,
गरीब अपनी दशा पर बेहाल है,
और आज़ादी मना रहे हैं हम।
ये कैसी आज़ादी और किसकी आज़ादी?
बहू बेटियों पर हो रहा अत्याचार है,
हैवानियत का जूनून सब पर सवार है,
इंसानियत हो रही शर्मशार है,
आँखें मूंदकर सो रही सरकार है।
और आज़ादी मना रहे हैं हम।
रोटी पानी बिजली अभी तक ना मिली,
दाने दाने को मोहताज परिवार है,
चारों तरफ फैला सिर्फ भ्र्ष्टाचार है,
पढ़े लिखे युवा भी बेरोजगार हैं।
और आज़ादी मना रहे हैं हम।
देशद्रोहियों का बढ़ रहा ब्यापार है,
आतंकियों के समर्थन में उतरे हजार हैं,
वीर सपूतों को कर रहे दरकिनार हैं,
ऐसी आज़ादी पर हमें धिक्कार है।
©नीतिश तिवारी।
3 Comments
मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteसच है आज़ादी के सही मायने नहीं मिले हैं हमें ... भावपूर्ण ...
ReplyDeleteधन्यवाद सर।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।