खुले आसमान में मैं अपने ख्वाब बुनता रहा,
तेरी यादों के सहारे मैं उस रात जागता रहा,
कयामत आ जाती तो मैं स्वीकार कर लेता पर,
अफसोस, पतंग भी उड़ती रही और डोर भी कटता रहा।
फुर्सत के पल और उसकी धुंधली यादें,
बार बार नजर आती हैं उसकी कातिल निगाहें,
करता हूँ इंतज़ार अब भी फैलाएँ अपनी बाहें,
एक दिन वो आएगी और पूरी होंगी मेरी दुआएं।
©नीतिश तिवारी।
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