मेरे नाम का सिंदूर है उसकी माँग में,
उसने हाथों में मेंहदी रचाई है मेरे लिए,
जब जब धड़कता है मेरा दिल उसके लिए,
बजती है उसकी पायल सिर्फ मेरे लिए,
तो कैसे ना करूँ मोहब्बत उस दिलरुबा से,
क्यों ना पूजूँ मैं अपनी अर्धांगिनी को,
जब इस सावन में मोहब्बत बरस रही है खुलकर,
क्यों न भींग जाऊं आज मैं जी भरकर।
©नीतिश तिवारी।
4 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-08-2016) को "धरा ने अपना रूप सँवारा" (चर्चा अंक-2427) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हरियाली तीज और नाग पञ्चमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteक्यों नहीं प्यार से ही प्यार बढ़ता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
बिल्कुल सही कहा आपने। आपका शुक्रिया।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।