मेरी चाँद को घेर लिया फलक के सितारों ने,
मेरी नींद को तोड़ दिया जुल्फ के बहारों ने,
कभी नवाज़िश महबूब की तो कभी इबादत खुदा की,
मेरी ज़ीस्त को रोक दिया हालात के दीवारों ने।
वाकिफ तो था मैं इस दुनिया की दस्तूर से,
वफ़ा की उम्मीद कर बैठे हम एक मगरूर से,
ऐसा क्या हुआ जो एक पल में ठुकरा कर चली गयी,
बस पूछता रहता हूँ मैं तेरी तस्वीर से।
©नीतिश तिवारी।
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