मुझे आशिकी की लत् तो नहीं थी।
बस खो गए थे तेरी निगाहों में।।
वो सफर भी कितना हसीन था।
जब सो गए थे हम तेरी बाहों में।।
वक़्त गुजरा मोहब्बत मुक्कमल हुई।
मेरी साँस घुल गयी थी तेरी साँसों में।।
बड़ी आसान लगने लगी मंज़िल मेरी।
तूने मखमल जो बिछाये मेरी राहों में।।
फुर्सत नहीं मुझे दिल्लगी से अब।
हर वक़्त रहता हूँ तेरे खयालों में।।
नया किरदार बनके उभरा हूँ मैं अब।
क्या खूब तराशा है तूने मुझे।।
©नीतिश तिवारी।
4 Comments
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-10-2016) के चर्चा मंच "हर्ष का त्यौहार है दीपावली" {चर्चा अंक- 2510} पर भी होगी!
ReplyDeleteदीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।