तुझको चाहा तो मैंने मगर पा ना सका,
तेरी आँखों की दरिया में डुबकी लगा ना सका,
तुम्हे मेरी ज़िन्दगी के उजाले से नफरत थी,
चारों तरफ अंधेरा था, मैं तेरे पास आ ना सका।
तेरे चेहरे की रंगत को मैं पा भी ना पाया,
और इस दर्द की दवा को मैं ला भी ना पाया।
तुझे फुर्सत मिले तो कभी याद कर लेना,
ज़िंदा हो चुका हूँ, फिर से बर्बाद कर लेना।
©नीतिश तिवारी।
1 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरूवार (01-06-2017) को
ReplyDelete"देखो मेरा पागलपन" (चर्चा अंक-2637)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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