इश्क़ मुकम्मल।
इश्क़ मुकम्मल हो या ना हो,
मैं एक बार इसे करूँगा जरूर।
विजय हो जाऊँ या पराजय मिले,
मैं एक बार युद्ध लडूंगा जरूर।
किसी को बुरा लगे या भला,
मैं एक बार सँच कहूँगा जरूर।
दुनिया को भरोसा नहीं आज मुझपे,
मैं एक बार मुकाम बनाऊंगा जरूर।
©नीतिश तिवारी।
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