कभी-कभी शब्द
नहीं मिलते,
फिर भी खयालों
को बुनने का
मन करता है।
नदी किनारे सीप
की मोतियों को
यूँ ही चुनने का
मन करता है।
मैं एक कवि हूँ।
गुजरते हुए इस
वक़्त को थामने
का मन करता है।
सोचता हूँ कुछ
ऐसा लिख जाऊँ
जो अमर प्रेम
कृति बन जाए।
मैं एक कवि हूँ।
मुश्किलें तो बहुत
आती हैं पर
हौंसला नहीं खोते हैं।
हर परिस्थिति में
एक जैसे रहें,
कवि वैसे होते हैं।
©नीतिश तिवारी।
6 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-02-2017) को "नागिन इतनी ख़ूबसूरत होती है क्या" (चर्चा अंक-2894) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Apka dhnywaad
DeleteBahut Khub
ReplyDeleteThank you!
Deleteउम्दा
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।