एहतराम किया।
तुम्हारी खामोशियों का एहतराम किया है मैंने,
अपनी ग़ज़ल को भी तेरे नाम किया है मैंने।
अपनी पलकों से आँसू को निकलने ना दिया,
अपने जज़्बात को तेरा गुलाम किया है मैंने।
यूँ तो बर्बाद हो गया मैं तेरी मोहब्बत में लेकिन,
फ़कीरी में भी दाना-पानी का इंतज़ाम किया है मैंने।
©नीतिश तिवारी।
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