चाहे लाख मेहंदी लगा ले किसी और के नाम की,
तेरे हांथों की लकीरों से अब मैं नहीं मिटूँगा।
नफरतों का दौर तो तुम्हारे शहर में होता होगा,
हमारे यहाँ तो आम भी पत्थर से नहीं हाथ से तोड़ते हैं।
©नीतिश तिवारी।
तेरे हांथों की लकीरों से अब मैं नहीं मिटूँगा।
नफरतों का दौर तो तुम्हारे शहर में होता होगा,
हमारे यहाँ तो आम भी पत्थर से नहीं हाथ से तोड़ते हैं।
©नीतिश तिवारी।
2 Comments
क्या बात है ... शहर की मानकर तो देखिए .. आम भी पत्थर से नहि तोड़े जाते ... बहुत लाजवाब शेर ...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।