तेरे होने से ना जाने क्यों मुझे डर लगता है,
ऐसा तो नहीं कि तेरे पास कोई खंज़र रहता है।
भरोसे के लायक ना तूने मुझे छोड़ा ना ज़माने को,
अब तो इन आँखों में आँसुओं का समंदर रहता है।
मोहब्बत से, रुसवाई से, दोनों से नवाज़ा है तूने,
तुम जैसे लोगों में ही तो ऐसा हुनर रहता है।
यकीं मैं दिलाऊँ भी तो अपने दिल को किस तरह,
जब तेरे जैसा हरजाई इस दिल के अंदर रहता है।
©नीतिश तिवारी।
4 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-10-2018) को "शरीफों की नजाकत है" (चर्चा अंक-3117) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Deletecool
ReplyDeleteहर शेर पर सहसा वाह निकल जाता है.
बेहद उम्दा रचना.
आप भी आइयेगा मेरी गजल तक नाफ़ प्याला याद आता है क्यों? (गजल 5)
bahut bahut dhnywaad
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।