मैंने तो कहा था कि मुझे भूल जाओ,
पर तुम्हारी ही ज़िद थी याद करने की।
ना दिल दिया कभी, ना कभी प्यार किया,
फिर कौन सी वजह है मुझे याद करने की।
सूखे पत्ते, बिखरे मोती, सब कुछ अंजान,
ये मौसम नहीं है अब याद करने की।
बगावत, सियासत, उल्फत और शिकायत,
ये कैसी सज़ा मिली है तुझे याद करने की।
©नीतिश तिवारी।
ये भी देखिए:
4 Comments
Nice
ReplyDeleteThank you!
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (08-12-2018) को "शहनाई का दर्द" (चर्चा अंक-3179) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार सर जी।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।