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मुझे आज़ाद कर दो।
















Pic credit : Google.








जकड़ा हूँ तेरी यादों की जंजीरों से
आकर मुझे आज आज़ाद कर दो 
भटकता हूँ बंजारे की तरह
एक शहर से दूसरे शहर
सुलझा के मेरी पहेली खत्म ये फसाद कर दो
जकड़ा हूँ तेरी यादों की जंजीरों से 
आकर मुझे आज आजाद कर दो 

बढ़ ना पाया तेरी बातों से आगे
निकल ना पाया तेरी वादों से आगे
कोशिश जब भी कि मैंने खुद पर फ़तह पाने की
बड़ी मुश्किल कर जाते तेरे बांधे धागे
इन धागों को आ खुद तोड़, मेरा नया आगाज कर दो
जकड़ा हूँ तेरी यादों की जंजीरों से 
आकर मुझे आज आज़ाद कर दो 

शायद तुझे फिक्र नहीं है मेरी
पर पागल की तरह करता रहता हूँ
हर समय हर वक्त जिक्र तेरा
मुकम्मल गीत सी थी तुम 
मै था अधूरा सरगम तेरा
फिर से रख के दामन पे हाथ मेरे
पूरा तुम मेरा हर साज कर दो
जकड़ा हूँ तेरी यादों की जंजीरों से 
आकर मुझे आज आज़ाद कर दो 

मुस्कुराहट पर तेरी मरता था मैं
हो ना जाए तू मुझसे दूर 
इसी बात से डरता था मैं
अब ना वो तेरी मुस्कुराहट रही 
ना ही मेरा डर रहा
और ना ही मेरी मंजिल रही
और ना ही अब मेरा घर रहा
कुछ यादें हैं जिन्हें लिए फिर रहा हूँ मैं
जानता हूँ तुम बेरहम हो
उसी बेरहमी से खत्म उन यादों को आज कर दो
जकड़ा हूँ तेरी यादों की जंजीरों से 
आकर मुझे आज़ाद कर दो 

©राजकुमार रॉय।

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6 Comments

  1. ये खुद के बांधे प्रेम धागे हैं .... अब आजादी कहाँ मिलने वाली है ...
    खुद हो तोड़ सको तो तोड़ो ...
    अच्छा लिखा है ...

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  2. वाह !जबाब नहीं आप का
    बहुत सुन्दर
    सादर

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