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ये गीता का ज्ञान
नहीं ये मोहब्बत
की दास्तान है।
कुरुक्षेत्र बना
है दिल मेरा
जिसमें तेरे छल
और प्रपंच है
तुम जीतना
चाहती हो मुझसे
पर अफसोस
ये मुमकिन ना होगा।
भले ही जज्बात
रूपी हजारों सैनिक
हैं तुम्हारे पास
लेकिन मेरे पास
कृष्ण सरीखा
धैर्य है
हौसला है।
ना मैं कर्ण हूँ
और ना ही
तुम दुर्योधन
जो तुम्हारे मोहब्बत
के कर्ज तले
मैं दबा रहूँगा।
ना मैं अभिमन्यु
हूँ जो तेरे
भावनाओं के
चक्रव्यूह में आकर
मार दिया जाऊँगा।
ना मैं धृतराष्ट्र हूँ
ना तुम संजय
जो तुम सुनाओगी
और मैं चुपचाप
सुन लूँगा।
प्रेम के इस
धर्मयुद्ध में
जीत किसकी
होगी ये तो
वक़्त बताएगा।
बस इतना कहना
है तुमसे कि
मोहब्बत में महाभारत
का वक़्त तुमने
गलत चुना है।
©नीतिश तिवारी।
2 Comments
बेहद सुंदर रचना....
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।