वो आषाढ़ का पहला दिन था
मगर मैं अज्ञात उनसे मिलने चला
टिक-टिकी 4:45 की ओर इशारा कर रही थी
घनघोर घटा उमड़ रहे थे
मानो उनका भी मिलन महीनों बाद आज ही होने वाला था
वैसे मैं भी महीनों बाद ही मिलने वाला था
इंतज़ार के लम्हे तन्हाईयों के आगोश में लिपटे मुझसे परिचय कर रहे थे
टिक - टिकी के गति से तेज धक-धक की बेचैन करने वाली आवाज सुनाई देने लगी जैसे ही दूर से उनकी आहटों का एहसास हुआ
रोम रोम पुलकित हो उठा
तभी नभ से एक बूंद मेरे बालों को चूमता हुआ ललाट तक आ पहुँचा
मानो जैसे वहाँ भी मिलन बस होने ही वाला था
वो मेरे और नज़दीक आ रही थी
मगर मैं एक ही जगह अपने पाँव को अंगद की भाती जमाये खड़ा था
मेरे हाथों में जो गुलाब की पंखुड़ियों का समूह था वो सतह को चूमने वाला ही था तभी एक और बूंद मेरे हाथों को अपना एहसास करने में सफल रहा और पंखुड़ियों के समूह को सतह पर बिखरने से रोक दिया
अब वो मेरे करीब थी और मैं खुशी घबराहट और हिचकिचाहट से अपना परिचय करा रहा था
तभी उन्होंने मेरे हाथों से पंखुड़ियों का गुच्छा लिया और अचानक से बादल भी टूट पड़े
वो आषाढ़ का पहला दिन था ।।
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©शांडिल्य मनीष तिवारी।
13 Comments
very nice ...keep going💐💐💐
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 14 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
DeleteBahut khub bhai sahab
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteबेहद खूबसूरत
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (15-07-2019) को "कुछ नया होना भी नहीं है" (चर्चा अंक- 3397) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद सर।
Deleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteबहुत अच्छी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।