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ग़ज़ल- चरागों का एहतराम किया।

























Pic credit : Pinterest








दिवाली थी तो चरागों का एहतराम किया,
दिल अपने जलाए और तेरे नाम किया।

खुदगर्ज़ी का शौक तो तुमने पाला था,
हमने तो अपना वक़्त भी तेरे नाम किया।

साँस लेने में हमें अब तकलीफ़ होती है,
जब से इन हवाओं को तेरा गुलाम किया।

दर्द देने की फितरत से तू बाज ना आया,
इसलिए हमने मोहब्बत सरेआम किया।

अंज़ाम-ए-वफ़ा क्या होता इस कहानी का,
खंज़र ले आया और मौत का इंतज़ाम किया।

©नीतिश तिवारी।

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6 Comments

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-07-2019) को "नदारत है बारिश" (चर्चा अंक- 3406) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

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  2. Bahut hi badhiya creation🙏🙏

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