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करते रहे हम उम्र भर ज़िंदगी से शिकवा,
फिर मौत से सामना हुआ और ज़िंदगी रूठ गई।
Karte rahe hum umr bhar zindgi se shikwa,
Fir maut se saamna hua aur zindgi rooth gayi.
सफर में हमसफर मिले और ज़िंदगी सँवर जाए,
ऐसा हसीन सपना मैंने देखा था एक रोज।
Safar mein humsafar mile aur zindgi sanwar jaye,
Aisa haseen sapna maine dekha tha ek roj.
©नीतिश तिवारी।
4 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-07-2019) को "नदी-गधेरे-गाड़" (चर्चा अंक- 3392) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत बहुत सुंदर।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।