चिराग जलाने जा रहे हो,
हवा को भी ले जा रहे हो।
बिखरकर टूट चुके हो तुम
फिर भी मुस्कुरा रहे हो।
इश्क़ में इतने पागल हो तुम,
दिन में चाँद को बुला रहे हो ।
तूफानों से तो डर लगता था,
दरिया में नाव चला रहे हो।
इश्क़ को मुकम्मल नहीं होना,
फिर भी उसे आजमा रहे हो।
©नीतिश तिवारी।
12 Comments
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22.8.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3435 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (23-08-2019) को "संवाद के बिना लघुकथा सम्भव है क्या" (चर्चा अंक- 3436) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद।
Deleteजब चाँद ही बुला रहा हो तब क्या करें !
ReplyDeleteफिर तो चाँद के पास चले जाना चाहिए।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ अगस्त २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
Deleteतूफानों से तो डर लगता था,
ReplyDeleteदरिया में नाव चला रहे हो।
रिस्क भी लेने पड़ते हैं जीवन में....
बहुत खूब ।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Deleteवाह बहुत खूब 🌹
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।