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दीवानों की बस्ती में मस्ताने हुए हैं हम,
शम्मा के इंतजार में परवाने हुए हैं हम,
यूँ तो यहाँ हर शख्स की मौजूदगी है,
अपनों की महफ़िल में बेगाने हुए हैं हम।
Deewanon ki basti mein mastane huye hain hum,
Shamma ke intzaar mein parwane huye hain hum,
Yun to yahan har shaks ki maujoodagi hai,
Apnon ki mahfil mein begane huye hain hum.
©नीतिश तिवारी।
8 Comments
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-08-2019) को "मेक इन इंडिया " (चर्चा अंक- 3438) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteनीतिश जी उम्दा सृजन।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद।
Deleteवाह !बेहतरीन
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।