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दिल टूट जाए तो जुड़ता नहीं है,
यार बिछड़े तो फिर मिलता नहीं है,
मरहम की तलाश मत कर ऐ काफ़िर,
ज़ख्म गहरा हो तो फिर भरता नहीं है।
Dil toot jaye to fir judta nahin hai,
Yaar bichhde to fir milta nahin hai,
Marham ki talash mat kar aie kafir,
Zakhm gahra ho to fir bharta nahin hai.
©नीतिश तिवारी।
8 Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-09-2019) को "महानायक यह भारत देश" (चर्चा अंक- 3471) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। --हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत धन्यवाद सर।
Deleteबहुत खूब /उम्दा।
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteबेहतरीन रचना,
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteबेहतरीन रचना,
ReplyDeleteआपका शुक्रिया।
Deleteपोस्ट कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएँ और शेयर करें।