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तो क्या वो...

Hindi romantic shayari






















बहारें फूल नहीं बरसा रही हैं,
तो क्या महबूब नहीं आएगा।

सितारे आज रौशन नहीं हैं ,
तो क्या रात नहीं होगी।

हमसे आज ख़ता हो गयी है,
तो क्या वो मोहब्बत छोड़ देगी।

रोज सज़दा नहीं करता उसका,
तो क्या वो इनायत छोड़ देगी।

©नीतिश तिवारी।

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10 Comments

  1. हिंदी के इतने जानकर तो नहीं हूँ मैं।
    महबूब स्त्रीलिंग भी हो सकता है तो आप "आएगा" को "आएगी" लिख सकते हैं या नहीं।
    पहले कन्फर्म कर लें।

    सुंदर रचना।

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    1. महबूब स्त्री और पुरुष दोनों को कहा जाता है। अक्सर कविता , ग़ज़ल और शायरी में स्त्रीलिंग भी पुलिंग में ही लिखा जाता है।

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  2. बिलकुल नहीं होगा ऐसा ...
    सब कुछ होगा ... बस समय और धरी होना जरूरी है ...

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (04-10-2019) को   "नन्हा-सा पौधा तुलसी का"    (चर्चा अंक- 3478)     पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।  
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. रचना शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद।

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  4. सब होगा ! श्रद्धा, लगन, विश्वास अटूट होना चाहिए

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    1. बिल्कुल सही कहा आपने। धन्यवाद।

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